खुद की जय करें…आत्ममंथन करके बड़े से बड़े संकट से उबर सकता है इंसान
नई दिल्ली। वर्तमान संकट ने यह साबित किया है कि हम जितना अपने आपसे जुड़ेंगे, आत्ममंथन करेंगे, खुद की खूबियों और खामियों दोनों को जान सकेंगे और संकट चाहे कितना भी बड़ा हो, उससे उबर सकते हैं। संकटकाल में प्रबल आत्मशक्ति वाले ध्यान-योग करें या न करें, लेकिन वे प्रार्थना जरूर करते हैं। प्रार्थना यही करते हैं कि हे ईश्वर, आपने जिस तरह मुझे आगे बढ़ने की शक्ति दी, आगे भी देना। सही निर्णय की समझ देना और अपने उस निर्णय पर टिके रहने की ताकत भी देना।
ध्यान दें, यह प्रार्थना ही ऐसे लोगों के लिए ध्यान बन जाती है। वे हरदम ध्यान में रहते हैं। सोचते रहते हैं, चिंतन करते हैं कि कहां कमी रह गई, जिसे मुझे दूर करना है। आप पूछेंगे कि कहां से आती है उनमें मजबूती तो यही उत्तर है इसका कि वे हरदम खुद में लीन रहते हैं, खुद के बारे में चिंतन करते हैं, मंथन करते हैं और मुश्किलों का समुचित समाधान निकालते हैं।
यह सच है कि सारी समस्या की जड़ हमारे अंदर है और समाधान भी हमारे पास ही रहता है। मैंने इस साल पिछले पांच महीनों में 123 वेबिनार किए, जिसमें दुनिया भर से लोग जुड़े। सबने यही सवाल किया कि आपने इस संकट काल में खुद को कैसे प्रेरित रखा। मैंने ज्यादा कुछ नहीं कहा, क्योंकि मुङो लगता है कि बस एक चीज सबसे अधिक जरूरी है। वह है खुद के प्रति जिम्मेदार होना। इसके बाद आप खुद-ब-खुद आंतरिक खोज की यात्र पर निकल जाएंगे। यहां आपको दो तरीके बताता हूं, जो मन ही मन आपको करते रहना है।
मन को दें अच्छी सलाह
आप खुद से कितनी बार बातें करते हैं और क्या बातें करते हैं? यह आपके व्यवहार की दिशा तय कर सकता है। जैसे यदि आपदा काल में आपने नकारात्मक बातें कीं, तो तनाव झेलते रहेंगे। खुद से बात का प्रभाव आपके मन को बड़ा प्रभावित करता है। इसे ‘मेंटल कंडीशनिंग’ कहा जाता है। यहां ‘ऑटो सजेशन’ यानी खुद को सलाह भी देना होता है। जैसे, तुम्हें यह काम करना है, ऐसे इस दिशा में सोचना है आदि सजेशन से आपका मन भी उसी दिशा में मुड़ने का प्रयास करेगा। आप यदि कहेंगे कि मैं आक्रामक इंसान हूं, मुझे तो इस समय बहुत गुस्सा आ रहा है, यह बात मैं नहीं सह सकता तो आप देखेंगे कि आपके व्यवहार में वह बात नजर आने लगेगी। वहीं, इसकी जगह यदि आप कहेंगे कि परिस्थिति चाहे जितना परेशान करे, पर मुङो शांत रहना है, धैर्यपूर्वक परिस्थिति को समझकर आगे बढ़ना है तो आपका मन उस सलाह को लेकर सक्रिय होने लगेगा। ध्यान दें, वर्तमान संकट के दौरान जो लोग अपने आप को सामान्य से ऊपर उठा सके, उनमें यह विशेषता देखी जा सकती है।
करना है विजुलाइज
आप जो बातें खुद से करते हैं, उन्हें सचमुच घटता हुआ भी देखना जरूरी है, अन्यथा मन को प्रशिक्षित करने की प्रक्रिया पूरी नहीं होगी। मन में देखें कि आपने जो सोचा है, वह आप बन पा रहे हैं या नहीं? दरअसल, इसे विजुलाइज करना कहते हैं। इस संबंध में एक उदाहरण बताता हूं। शिकागो की एक बास्केटबॉल टीम को तीन हिस्से में बांटा गया था। एक को कहा गया कि बस आपको अभ्यास करते रहना है। दूसरे समूह को केवल मेंटल प्रैक्टिस यानी विजुलाइज करने को कहा गया। इसमें उन्हें मन ही मन खुद को खेलते देखना था। तीसरे समूह को कुछ नहीं करना था। तीस दिन यानी एक माह बाद तीनों समूह को बुलाया गया तो पता चला कि पहले दोनों समूह यानी जो केवल प्रैक्टिस करते रहे और जो केवल मेंटल प्रैक्टिस या विजुलाइज करते रहे, दोनों का स्तर बेहतर हुआ। तीसरा जिसने कुछ नहीं किया, उसका स्तर गिर गया था। यानी चाहे आप शारीरिक अभ्यास करें या मानसिक, दोनों समान रूप से उपयोगी होता है।
आप पर निर्भर है कि आप क्या फैसला लेते हैं
जो अच्छे वक्ता होते हैं, जिनकी बातों से आप प्रभावित हो जाते हैं, उनकी भी यही खूबी होती है। आपने स्कूल में ड्रामा किया होगा, आपसे यही कहा जाता होगा कि पहले मन में रिहर्सल कर लें तो अपनी भूमिका बेहतर कर सकेंगे। यही आंतरिक प्रक्रिया है, जो आपको भीड़ से अलग करती है। आप एकाग्र हो जाते हैं, अपने आत्मविकास के लिए। अब यह आप पर निर्भर है कि आप क्या फैसला लेते हैं, आने वाले समय में कितना बेहतर बनने का प्रयास करते हैं।
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.