राजनीति को सहारा देते रिजॉर्ट: राजनीति का नाता जनसेवा से हो या न हो, रिजॉर्ट से पक्का हो गया
इन दिनों आर्थिक मंदी सभी धंधों पर चोट कर रही है। इनमें होटल-रिजॉर्ट का धंधा भी शामिल है, लेकिन हमारे नेताओं ने उनकी नैया पार लगाने का बीड़ा उठा लिया है। कभी यहां कभी वहां के नेता आते ही रहते हैं उनमें। लोकतंत्र है तो होटल है-रिजॉर्ट है। कई लोगों के लिए लोकतंत्र ही परमानेंट होटल और रिजॉर्ट है। लोकतंत्र में होटल-रिजॉर्ट लगातार चर्चा में रहते हैं। अभी कर्नाटक वाले आए थे, फिर मध्य प्रदेश वाले आए। अब राजस्थान वालों की बुकिंग हो गई है। सुना है कि महाराष्ट्र वालों से बात चल रही है। लोकतंत्र है तो होटल और रिजॉर्ट रहेंगे।
राजस्थान विधायकों की दौड़ होटल या रिजॉर्ट तक
मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक हो-न हो, विधायक की दौड़ होटल या रिजॉर्ट तक हो रही है। बार-बार हो रही है। विधायकों की इतनी आवाजाही रिजॉर्ट में हो रही है कि लघु विधानसभा पांच सितारा होटल या रिजॉर्ट में स्थापित करने की मांग भी उठ सकती है। उठनी भी चाहिए, क्योंकि जब विधायकों को अपना तमाम वक्त वहीं गुजारना है तो पास में विधानसभा भी आ जाए तो काम आसान हो जाएगा।
होटल-रिजॉर्ट विधानसभा में तब्दील कर दिए जाएं ताकि खर्च भी बचेगा और विधायकों की भागदौड़ भी
काम तनिक आसान करने के लिए तो यह और भी अच्छा होगा कि होटल-रिजॉर्ट ही विधानसभा में तब्दील कर दिए जाएं ताकि एक पंथ-दो काज हो जाएं। खर्च भी बचेगा और विधायकों की भागदौड़ भी। वैसे भी अब तो विधानसभाएं ज्यादा दिन चलती भी नहीं हैं।
राजनीति का रिश्ता जनसेवा से हो या न हो, रिजॉर्ट से पक्का हो गया है
कई विधायक अपने इलाके में नहीं गए हैं महीनों से। विधानसभाओं में भी नहीं गए हैं। वे चली ही नहीं, पर होटल-रिजॉर्ट चल रहे हैं तो वे वहां होकर आए हैं। राजनीति का रिश्ता जनसेवा से हो या न हो, रिजॉर्ट से पक्का हो गया है। होटल-रिजॉर्ट की लोकतंत्र में अहम भूमिका हो गई है। लोकतंत्र सिर्फ नेताओं के सहारे नहीं चलता। दरअसल न्यायपालिका, कार्यपालिका, मीडिया के साथ-साथ लोकतंत्र होटल-रिजॉर्ट के बिना भी नहीं चल सकता। उनके बगैर सरकारें बनना-गिरना कठिन है।
जिसके पास होटल या रिजॉर्ट है, वह नेता बन सकता है
अभी हाल में ही 12वीं कक्षा के रिजल्ट आए। एक पिता बहुत नाराज थे बच्चे से। सिर्फ 90 प्रतिशत नंबर लाया था बच्चा। मैंने कहा, आप चिंता छोड़ें। बच्चे को पॉलिटिक्स में डालें, विधायक बन जाएगा। पॉलिटिक्स न चले, तो फिर रिजॉर्ट खुलवा दें। इससे वह राजनीति के आसपास बना रहेगा। पुराने जमाने में राजनीतिक कार्यकर्ता होते थे नेताओं के पास। अब होटल-रिजॉर्ट के मालिकों का कनेक्शन रहता है नेताओं के साथ। क्या पता कब जरूरत पड़ जाए रिजॉर्ट की? जिसके पास होटल या रिजॉर्ट है, वह देर-सबेर खुद भी नेता ही बन सकता है। राजनीति में होटल-रिजॉर्ट का असर कुछ ऐसा हो गया है कि उससे कोई बच नहीं सकता।
जब तक लोकतंत्र में आवाजाही है तब तक रिजॉर्ट का कारोबार धुआंधार है
कक्षा 12 के बाद कौन-कौन से करियर ठीक रहेंगे-इस पर इन दिनों तमाम एक्सपर्ट लोग राय दे रहे हैं। अभी रिजॉर्ट की ओर एक्सपर्ट लोगों का ध्यान ही नहीं गया है। दरअसल एक्सपर्ट लोग दूरदर्शी होते हैं इसलिए वे दूर की देखते हैं। एकदम सामने की बात दिखाई न देती एक्सपर्ट लोगों को। रिजॉर्ट धुआंधार चल रहे हैं। मंदी मुक्त कारोबार है रिजॉर्ट, क्योंकि लोकतंत्र में आवाजाही हमेशा ही चलती रहती है। जब तक लोकतंत्र में आवाजाही है तब तक रिजॉर्ट का कारोबार धुआंधार है। अब तो आप यह भी कह सकते हैं कि जब तक रिजॉर्ट हैं तब तक लोकतंत्र की आवाजाही भी रहेगी।
होटल-रिजॉर्ट के धंधे में चीन से कंपटीशन नहीं है
होटल-रिजॉर्ट के धंधे की एक बहुत ही जोरदार खूबी यह है कि इसमें चीन से कंपटीशन नहीं है। धंधा वही बढ़िया जिसमें चीन से कंपटीशन न हो। चीन से कंपटीशन हो तो आफत आ जाती है। कस्टमर पर मानसिक दबाव आ जाता है कि सस्ते चीनी आइटम खरीदकर रकम बचाऊं या महंगा खरीदकर देशभक्ति की भावना बढ़ाऊं। पेचीदा प्रश्न हो जाता है। होटल-रिजॉर्ट के धंधे चीनी कंपटीशन से मुक्त हैं। अब तो मुक्त रहने के आसार और बढ़ गए हैं, क्योंकि चीनी कंपनियां देश से बोरिया-बिस्तर समेटने की तैयारी कर रही हैं। इसलिए इसका खतरा भी नहीं कि वे होटल-रिजॉर्ट खोलकर कंपटीशन में आ जाएंगी।
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