अयोध्या सिर्फ एक बसावट नहीं, एक सभ्यता और एक जीवन है, यहां के कण-कण में राम
नई दिल्ली। अयोध्या सिर्फ एक बसावट नहीं है। यहां के कण-कण में राम और श्रीराम के मन में रामनगरी बसती है। अयोध्या जीवन है, अयोध्या सभ्यता है, अयोध्या हमारे दैनिक जीवन के मूल में है। इस नगरी को महान और सर्वश्रेष्ठ बनाते हैं प्रभु श्रीराम, जिन्होंने सरयू तट पर बसी इस अलौकिक नगरी में माता कौशल्या के गर्भ से जन्म लिया। यह अयोध्या तभी से अयोध्यापुरी हो गई। स्कंद पुराण में अयोध्या शब्द के महात्म्य को समझाया गया है।
अयोध्या में अ कार ब्रह्मा, य कार विष्णु तथा ध कार रुद्र का स्वरूप
अकरो ब्रह्म च प्रोक्तं यकरो विष्णुरुच्यते, धकारो रुद्ररुपश्च अयोध्यानाम राजते। यानी अयोध्या में अ कार ब्रह्मा, य कार विष्णु तथा ध कार रुद्र का स्वरूप है। इसलिए अयोध्या त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु महेश का समन्वित रूप है। शिवसंहिता में अयोध्या के अनेक राम बताए गए हैं, नंदिनी, सत्या, साकेत, कोसल, राजधानी, ब्रह्मपुरी और अपराजिता।
सरयू के तट पर बसी अयोध्या को पुराणों में अष्टदल कमल के आकार का भी कहा गया है। बाल्मीकि रामायण के बालकांड के अनुसार जब मनु महाराज ने अयोध्या बसाई थी तो ये 12 योजन लंबी और तीन योजन चौड़ी थी। इसका कुल क्षेत्रफल- 79.8 वर्ग किमी है। समुद्र तल से अयोध्या की ऊंचाई-93 मीटर है। यहां का जनसंख्या घनत्व-700 प्रति वर्ग किमी है।
खास है नगरी
इक्ष्वाकु वंश प्रभवो रामो नाम जनै? श्रुत?, नियतात्मा महावीर्यो द्युतिमान् धृतिमान् वशी। बाल्मीकि रचित रामायण के बालकांड में भगवान राम के वंश का वर्णन है। इस वंश ने ही अयोध्या पर राज किया है। पवित्र अयोध्या भूमि ने अनेक महाने राजाओं को जन्म दिया। रघुकुल शिरोमणियों में महाराज भगीरथ हुए। जिन्होंने अपने पुरखों को तारने के लिए घोर तप और त्याग किया।
विवश होकर मां गंगा को धरती लोक पर आना पड़ा। सत्यवादी महाराज हरिश्चंद्र हुए, जिनके सत्य के आगे देवता भी हार गए। अयोध्या जैन धर्म के पांच तीर्थंकरों की जन्मस्थली भी है। जिसमें प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव जी हैं। ऐसे अनेक महान राजाओं-महाराजाओं एवं तपस्वियों की तपोस्थली है अयोध्या। यहां महात्मा बुद्ध ने 16 वर्ष बिताए। अनेक धर्मो की यह सृजनस्थली भी रही है।
ऐसे हुआ नामकरण
इस महान नगरी के नामकरण को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं। माना जाता है कि महाराज मनु ने अयोध्या नगरी को बसाकर उसका राज्य अपने ज्येष्ठ पुत्र इक्ष्वाकु को दे दिया। इक्ष्वाकु के बाद उनके पुत्र विकुक्षि अयोध्या के राजा हुए। विकुक्षि का दूसरा नाम अयोध भी था। कुछ विद्वानों के अनुसार इस नगरी का नाम इन्हीं के नाम पर पड़ा। एक अन्य कथा के अनुसार अयोध्या को अवध, साकेत और विनीता भी कहते हैं।
प्राचीन काल से लेकर महाकाव्य काल तक अयोध्या वृहद कोसल राज्य की राजधानी रही है। अपेक्षाकृत पूर्व में स्थित होने के कारण कोसल का राज्य बाहरी आक्रमणकारियों से बचा रहा, जो पश्चिम राज्यों पर प्राय? होते थे। इन आक्रमणकारियों का कोसल की तरफ बढ़ने का कभी साहस न हुआ। चूंकि इस राज्य को कभी जीता नहीं जा सका ये अजेय रहा लिहाजा इसे अवध कहा गया।
धार्मिक नगरी
हिंदू धर्म के साथ-साथ अयोध्या सिख, बौद्ध और जैन धर्म के लिए भी बहुत खास है। यह जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की जन्मभूमि भी है। जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए। इस धर्म की मान्यता के अनुसार 22 तीर्थंकर इक्ष्वाकु वंश के ही थे जिनमें 5 तीर्थंकरों की जन्मभूमि अयोध्या ही है। यहां सिखों का ब्रह्मकुंड गुरुद्वारा है। सिख समुदाय के तीन गुरुओं के यहां चरण पड़ चुके हैं। 1557 में प्रथम गुरु श्री गुरुनानक देव जी महाराज हरिद्वार से जगन्नाथ पुरी की यात्रा पर जाते समय सरयू तट के इसी ब्रह्मकुंड घाट पर रुके
1725 में नवें गुरु श्री गुरुतेग बहादुर जी महाराज असम से आनंदपुर साहिब जाते समय यहां मत्था टेका। 48 घंटे बैठकर अखंड तप किया। इसके बाद दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी छह साल की बाल्यावस्था में अपनी माता गुजरी जी व मामा कृपाल चंद्र जी के साथ पटना साहिब से आनंदपुर साहिब जाते समय यहां मत्था टेका और बंदरों के साथ क्रीड़ा की। उन्हें चना खिलाया। जातीय मंदिरों के रूप में यहां कुर्मी मंदिर, खटिक मंदिर, ठठेरा मंदिर, धोबी मंदिर, निषाद वंश मंदिर, पटहार मंदिर, पासी मंदिर, मुराव मंदिर, यादव पंचायती मंदिर, सोनार मंदिर, हलवाई मंदिर, श्री विश्वकर्मा मंदिर, प्रजापति मंदिर, पांडव क्षत्रिय मंदिर हैं।
रघुकुल शिरोमणि
भगवान राम को रघुकुल शिरोमणि कहा जाता है। दरअसल इक्ष्वाकु वंश के सबसे प्रतापी राजा महाराज रघु थे। इनके पराक्रम और तेज से प्रसन्न होकर देवताओं ने इन वंश को इनके नाम से जाने जाने का आशीर्वाद दिया। कालांतर में इस वंश का नाम रघुवंश (रघुकुल) पड़ा।
परिक्रमा मार्ग
हिंदू धर्म में परिक्रमा का विशेष महत्व है। धार्मिक स्थल के चारों ओर चक्कर लगाने को परिक्रमा करते हैं। चूंकि अयोध्या में इतनी ज्यादा संख्या में मंदिर हैं कि कोई भी श्रद्धालु सभी जगह जाकर दर्शनलाभ नहीं ले सकता, इसलिए माना जाता है कि अगर आप पूरे क्षेत्र का चक्कर लगा लें तो आपको सभी मंदिरों के दर्शन का पुण्य प्राप्त हो जाता है। अयोध्या में मुख्यत? चार प्रकार की परिक्रमा की जाती है। अंतरगढ़ी परिक्रमा (रामकोट), पंचकोसी परिक्रमा, चौदह कोसी परिक्रमा और चौरासी कोसी परिक्रमा।
भौगोलिक स्थिति?
यह भारतीय संस्कृति की खूबी है कि देश के हर घर में मंदिर स्थापित किए जाते हैं, लेकिन मंदिरों की नगरी अयोध्या में प्रवेश करते ही आपको समझ में नहीं आएगा कि यहां मंदिरों में घर हैं या घरों में मंदिर। एक आकलन के मुताबिक यहां 7000 से अधिक मंदिर हैं। इनमें सौ से अधिक मंदिर अत्यधिक महत्व वाले हैं।
सरयू नदी के पावन तट पर स्थित अयोध्या रेल या बस द्वारा जाया जा सकता है। यह लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, प्रयागराज और गोरखपुर जैसे बड़े शहरों से अच्छी तरह जुड़ी है। यहां अभी एयरपोर्ट नहीं है, लेकिन नई अयोध्या में इस सुविधा के साथ तमाम प्रकार के कायाकल्प की तैयारी है। फैजाबाद तक हवाई सफर के साथ यहां पहुंचा जा सकता है। वैसे लखनऊ एयरपोर्ट भी यहां से 150 किमी दूर है।
उपयुक्त समय
आमतौर पर अयोध्या में साल भर मौसम सुहाना रहता है लेकिन यात्रा का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से दिसंबर के बीच का होता है। शहर अपने शाकाहारी भोजन के लिए जाना जाता है। रहने ठहरने के लिए तमाम धर्मशालाओं के साथ बेहतर सुविधा वाले होटल भी मौजूद हैं।