छत्तीसगढ़ में अब निजी कब्जे से मुक्त हो रहे जंगल, सामुदायिक वन संसाधन को हक के बाद आया बदलाव
अंबिकापुर। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के 10 गांव को लगभग छह हेक्टेयर भूमि का सामुदायिक वन संसाधन के हक का अधिकार पत्र मिलने के बाद ग्रामीण, वन भूमि व संपदा की सुरक्षा के लिए अग्रसर है। इसकी शुरुआत लखनपुर ब्लॉक के ग्राम लोसंगा से हो चुकी है। जंगल में बैठक करके वे ऐसे लोगों की खोज-खबर लेने में लगे हैं, जो कब्जे की नीयत से जंगल का सफाया करने में लगे हैं। 13 दिसंबर 2005 के बाद जंगल की भूमि पर कब्जा करने वालों पर इनकी नजर है। जंगल की भूमि व संसाधन पर किसी बाहरी व्यक्ति की नजर पड़े, यह उन्हें मंजूर नहीं हैं।
सामुदायिक वन संसाधन के हक का अधिकार पत्र प्राप्त करने के बाद इस दिशा में ग्राम लोसङ्गा के ग्रामीण काम करना शुरू कर दिए हैं। इनके द्वारा चार ग्रामीणों से जंगल की ऐसी भूमि को मुक्त कराया है, जहां कब्जे की नीयत से वृक्षों का सफाया कर दिया गया था। ग्रामीणों ने बकायदा कब्जे की जमीन को छोड़ने का पंचनामा बनाया और कब्जा धारक से शपथ लिया कि वे जंगल की भूमि पर कब्जा नहीं करेंगे।
ग्रामीणों में आई ऐसी जागरूकता के बाद उम्मीद है कि ऐसे ग्रामों की सीमा से लगे वन भूमि पर अब कोई ग्रामीण कब्जा नहीं कर पाएगा। 15 वर्षों के बीच किसने जंगल की जमीन पर कब्जा किया, इस पर नजर रखने से आसपास के गांव से सटे जंगल की भूमि पर कब्जा करने वाले भी सकते में हैं। बता दें कि सरगुजा देश का ऐसा पहला जिल है जहां ग्रामीणों को जंगल का सामुदायिक हक दिया गया है।
लोसंगा गांव पर एक नजर
ग्राम लोसंगा एक आदिवासी बाहुल्य गांव है, यहां 307 परिवार रहते हैं, जिनकी कुल आबादी 1424 है। लोसंगा में मुख्य रूप से उरांव, कंवर, गोंड, पंडो, पहाड़ी कोरवा, भुईया आदिवासी निवास करते हैं, जिसमें उराव समुदाय की आबादी सबसे ज्यादा है। गांव के लोग अभी भी आदिवासी संस्कृति को संजोकर रखे है, जो इनके पूजा-पाठ, नृत्य-गान व सामाजिक समारोह में प्रकृति से जुड़ाव से झलकता है। गांव में प्रायः सभी के मिट्टी वाले खपरैल घर है
पिछले एक साल से काफी लोगो ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्का मकान बनाया है। यह गांव ब्लॉक मुख्यालय लखनपुर से 10 किमी दूर है। पहाड़ी ग्राम होने के कारण बाहरी गांव के लोगों का जंगल में निस्तार हेतु काफी दबाव है, जिसकी सुरक्षा के लिए लंबे समय से संघर्ष की स्थिति बनी है। सामुदायिक वन संसाधन के अधिकार के लिए लंबा संघर्ष करने के बाद विश्व आदिवासी दिवस पर लोसगा के ग्रामीणों को 98.018 हेक्टर जंगल का सामुदायिक वन संसाधनों के लिए हक का अधिकार पत्र दिया गया।
कंपार्टमेंट संख्या पी-2265 की रुढ़ीजन्य सीमा
पूर्व-भैंसबथान, बड़े घोड़ापाठ, छोटे घोड़ापाठ, तेंदुडांड, दुल्हि-दुल्हा, गटई पानी।
पश्चिम-ककेरीडांड, छातामहुआ, पंडोपारा।
उत्तर-भुइयापारा, डोरीघर, मरघटीडुगु, जामढोड़गा, करमटिकरा।
दक्षिण-पंडो मरघटी, चोड़ेयाकोना, बरहाकोना, बांसकोना, सेमरढाब, सलेयाघुटरा।
सीमा से लगे गांव-लोसंगी, चोड़ेया, तुरगा, रेम्हला, सेलरा।
जंगल में अवैध रूप से कब्जा हुआ खत्म
सामुदायिक वन संसाधनों के हक का अधिकार पत्र मिलने के बाद यहां के ग्रामीणों ने ग्राम पंचायत की सरपंच के सहयोग से 18 अगस्त को 13 दिसम्बर 2005 के बाद जंगल में अवैध रूप से कब्जा करने वाले ग्रामीण धनीराम उरांव, भोलाराम भुईया, चमरुराम उरांव एवं मोहनराम भुईया को जमीन से बेदखल किया। जमीन को कब्जामुक्त करने का पंचनामा बनवा इन ग्रामीणों से शपथ भी करवाया गया। इसकी शुरुआत ग्राम लोसंगा के लगभग सौ ग्रामीणों ने गांव की सरपंच के पति हरीलाल लकड़ा के अगुवाई में की।
काफी संघर्ष के बाद सामुदायिक वन संसाधन के हक का अधिकार पत्र मिला
छत्तीसगढ़ वन अधिकार मंच के संयोजक गंगाराम पैकरा ने कहा, काफी संघर्ष के बाद गांव के लोगों को सामुदायिक वन संसाधन के हक का अधिकार पत्र मिला है। इसके पहले गांव के लोगों को वन विभाग के अफसरों और मैदानी कर्मचारियों पर जंगल की सुरक्षा और कब्जामुक्ति के लिए आश्रित रहना पड़ता था। वास्तव में जो काम वन अमले को करना था, वह अधिकार पत्र की प्राप्ति के बाद गांव के लोग एकजुट होकर करने लगे हैं। वन संसाधन के सामुदायिक अधिकार का हक ग्रामीणों को मिले, इसके लिए चौपाल ग्रामीण विकास प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान ने छत्तीसगढ़ वन अधिकार मंच, पहाड़ी कोरवा महापंचायत, आदिवासी अधिकार समिति के साथ साझा लड़ाई लड़ी, आंदोलन किया। इसके परिणामस्वरूप सरगुजा के दस गांव को वन संसाधनों का अधिकार पत्र मिलना संभव हुआ।
सुरक्षा को सभी नैतिक जिम्मेदारी समझें
लोसङ्गा ग्राम पंचायत की सरपंच शांति का कहना है कि वन संसाधन की सुरक्षा को सभी नैतिक जिम्मेदारी मान कर चलें, इसके लिए गांव के लोगों से आम सहमति ली जा रही है। गांव के जंगल में बाहरी व्यक्ति का दखल न हो, कोई वन संपदा को नुकसान न पहुंचाए, जंगल की भूमि पर बाहरी या गांव का व्यक्ति अतिक्रमण करने का प्रयास न करे, वन संपदा को नुकसान पहुंचा अतिक्रमण की गई भूमि को कब्जामुक्त कराने जैसी पहल गांव के लोगों के संयुक्त प्रयास से शुरू की गई है और चार ग्रामीणों के कब्जे से वनभूमि को मुक्त कराया गया है।
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.