कर्नाटकः जिस पंडाल में होती है गणेश पूजा, वहीं से निकलती है ताजिया
बेंगलुरु। कर्नाटक के धारवाड़ जिले के हुबली का बिदनाल गांव वर्षों से सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल पेश कर रहा है। मौलाना और मोहन यहां न जाने कब से गणेश चतुर्थी और मोहर्रम साथ मनाते आ रहे हैं। हर 30-35 साल के बाद यह दोनों पर्व एक साथ आते हैं और इस गांव में एक ही छत के नीचे दोनों को मनाया जाता है।
बता दें कि इन दिनों देश में गणेशोत्सव धूम-धाम से मनाया जा रहा है और इसी बीच मुहर्रम (Muharram) भी शुरू हो चुका है। ऐसे में हुबली (Hubli) के धारवाड़ (Dharwad) जिले के बिदनल (Bidnal) क्षेत्र में सौहार्द की बेहतरीन मिसाल देखने को मिली है। यहां हिंदू और मुसलमान साथ मिलकर एक ही पंडाल में गणेश चतुर्थी और मुहर्रम मना रहे हैं। यहां जब भी इन दोनों त्योहारों की तारीखें टकराती हैं तो इसी तरह एक ही पंडाल के नीचे गणेश चतुर्थी और मुहर्रम का आयोजन किया जाता है। इन लोगों का कहना है कि ऐसा पहले भी हुआ है हम उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
एक श्रद्धालु मोहन ने समाचार एजेंसी एएनआइ से बात करते हुए कहा कि यहां पहले भी इसी तरह एक ही पंडाल के नीच गणेश चतुर्थी और मुहर्रम का आयोजन किया गया है। हम उसी परंपरा को आगे लेकर चल रहे हैं। वहीं, मौलाना जाकिर काजी ने कहा कि हर 30-35 सालों में गणेश चतुर्थी और मुहर्रम की तिथियां टकराती हैं। इस गांव में कोई भी हिंदू या मुसलमान अकेला नहीं है, दोनों एक साथ आते हैं। हम सभी भगवान की संतान हैं।
बता दें कि 22 अगस्त से देश में गणेश चतुर्थी की शुरूआत हो चुकी है और कोरोना काल के मद्देनजर हर राज्य में त्योहार को लेकर अलग-अलग दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। वहीं, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मुहर्रम की ताजिया निकालने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि इस मांग को नहीं माना जा सकता क्योंकि इससे लोगों का स्वास्थ्य और उनकी जिंदगी खतरे में पड़ सकती है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि मुहर्रम के मौके पर ताजिया का जुलूस निकालने की अनुमति यदि दी जाती है और संक्रमण फैलता है तो इसके लिए समुदाय विशेष को जिम्मेदार माना जाएगा।
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