सांसदों और विधायकों को पुलिस का गिरफ्तार न करना गंभीर : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा व पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों में पुलिस के उन्हें गिरफ्तार करने में अनिच्छा दिखाने या कोर्ट में पेश न करने को गंभीर मामला करार दिया है। सर्वोच्च अदालत ने चिंता जताते हुए कहा कि संसद और विधानसभा के सदस्यों के खिलाफ मामलों में पुलिस अधिकारी विधायिका के दबाव में आ जाते हैं। इसीलिए वह उनके खिलाफ मामलों पर कोई कार्रवाई करने से कतराते हैं।
जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान कहा कि हमें बताया गया है कि कई बार पुलिस आरोपित सांसदों या विधायकों के खिलाफ इसलिए कानूनी कार्रवाई नहीं कर पाते क्योंकि उनके ओहदे का उन पर गहरा दबाव होता है। जस्टिस रमना ने यह भी कहा कि कई हाई कोर्ट उनसेलंबित मामलों की सुनवाई के लिए वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा की मांग कर रहे हैं।
खंडपीठ में शामिल जस्टिस सूर्यकांत और अनिरुद्ध बोस ने भी विभिन्न हाई कोर्ट की मांग का समर्थन करते हुए कहा कि हाई कोर्ट के जरिये सांसदों व विधायकों के खिलाफ नए लंबित मामलों का ब्योरा मिल रहा है। राज्यों को वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा से बहुत से लंबित मामलों का जल्द निपटारा हो सकेगा।
इस मामले में न्याय मित्र नियुक्त किए गए वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने कहा कि निगरानी के बावजूद हाई कोर्टो में पूर्व व वर्तमान विधायकों और सांसदों के खिलाफ लंबित मामले बढ़ते जा रहे हैं। इसलिए यह जरूरी हो गया है कि हाई कोर्ट इन का जल्द से जल्द निपटारा करें।
दागी नेताओं पर लंबित मामलों की संख्या 4442
मामले में याचिकाकर्ता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने खंडपीठ से आग्रह किया कि गंभीर अपराधों में आरोपित विधायकों और सांसदों के खिलाफ आजीवन प्रतिबंध लगाया जाए। पहले सर्वोच्च अदालत को बताया गया है कि मार्च, 2020 तक ऐसे लंबित मामलों की संख्या 4442 हो चुकी है।
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